निशब्द सा ठेहरा हूँ,
अनंत सा गहरा हूँ।
चित मे, सोच मे, गहन मे भी मैं ही हूँ।
जो ना बुझें वो सवाल मे भी मैं ही हूँ।
शब्द हूँ, अर्थ हूँ, भावार्थ मे भी मैं ही हूँ।
कल्पना जो पूर्ण हो,
उस उपसंगहार मे भी मैं ही हूँ।
खुश्क हूँ, रश्क हूँ, प्रतिहार भी मैं ही हूँ।
सूक्ष्म से कण के भीतर
विशाल सा संसार मैं ही हूँ।
तिरस्कार, संहार और श्रृंगार मे भी मैं ही हूँ।
श्वेत रंगों मे है सिमटा
इंद्रधनुष के पार अंधकार मे भी मैं ही हूँ।
स्वच्छ हूँ, परिपक हूँ और धेर्यवान मैं ही हूँ।
सत्य असत्य के परे
पारदर्शीता का उत्तर केवल मैं ही हूँ।
3 comments:
Good going...keep it on
Wao..
Thanks🤩
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