कहने को तो यूं में हारा नहीं
क्योंकि हर कश्ती का किनारा नहीं
रूबरू हूं में अपने आप से
लोगों के केह देने से में नकारा नहीं
जनता हूं मेरी गलती का सबब है हार मेरी
पर यूं हार मान कर मुझे पछताना नहीं
कह दो इस ज़माने से अपनी तसली अपने पास रखें
है मुझमें भी लड़ने की काबिलियत में कोई बेचार नहीं
मेरे मौला को भी है मुझपे भरोसा
शायद मैने ही अपनी काबिलयत को पहचाना नहीं
छोड़ जाऊंगा में भी इस ज़माने में अपना अस्तित्व
सूरज की रोशनी हूं, में कोई टूटता तारा नहीं
मेरी तकदीर भी चमकती हीरा है
मैने ही खुद को तसल्ली से तराशा नहीं
रहमत बकश मेरे इलाही मुझ पर
में भी तेरा बंदा हूं कोई आवारा नहीं।
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